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कहो दिन की सुने रात की

۔(عو) سوال کے برخلافجواب دینے والے کی نسبت مستعمل ہے۔

कहो दिन की सुनो रात की

प्रश्नों कुछ उत्तर कुछ, उत्तर प्रश्नों के उलटा देना

कहो आम की सुने इम्ली की

रुक : कहो दिन की सुने रात की

कहो ज़मीन की सुने आसमान की

रुक : कहो दिन की सुने रात की

कहो कुपड़े की सुने गात की

जो बात है सौ उलटी है, कम फ़ह्म की निसबत कहते हैं

कहो खेत के सुने खलियान की

रुक : कहो दिन की सुने रात की

पूछो दिन की बताए रात की

सवाल कुछ जवाब कुछ (ऊल-जुलूल बातें करने वाले के लिए कहते हैं)

दिन की पूछना रात की बताना

बदहवास होना, गुस्से सदमे या बदहवासी में उल्टे सीधे बेतुके जवाब देना

रात की मालज़ादी, दिन की ख़ूज़ादी

रात को बदकारी करती है दिन को शरीफ़ बिन जाती है इस औरत के लिए मुस्तामल जो बज़ाहिर पार्सा अर दरअसल बदकार हो

दिन की रात होना

घना अंधेरा होना, बहुत अंधेरा होना

रात-दिन उस की तस्बीह है

हर वक़्त उसको याद करता है

चार दिन की चाँदनी आख़िर अँधेरी रात

कुछ दिनों की सुख है, फिर वही पीड़ा, कुछ दिनों की उन्नति है फिर अवनति

दो दिन की चाँदनी फिर अँधियारी रात

हुस्न-ओ-शबाब, जाह वाकबाल-ओ-दौलत स्रोत सब फ़ना होने वाली चीज़ें हैं

चार दिन की चाँदनी और फिर अँधेरी रात

कुछ दिनों की सुख है, फिर वही पीड़ा, कुछ दिनों की उन्नति है फिर अवनति

दो दिन की चाँदनी है फिर अँधियारी रात

रुक : दो दिन की चांदनी फिर अंधेरा पाख़

दो दिन की चाँदनी है फिर अँधेरी रात

रुक : दो दिन की चांदनी फिर अंधेरा पाख़

कभी का दिन बड़ा कभी की रात बड़ी

۔مثل۔ زمانہ ایک حال پر نہیں رہتا۔ ؎

जो साधू की माने बात, आनंद रहे दिन रात

जो नेक एवं श्रेष्ठ लोगों के सदुपदेश माने वो सदैव आराम से रहेगा

जो साधू की माने बात, रहे आनंद वो दिन रात

जो नेक एवं श्रेष्ठ लोगों के सदुपदेश माने वो सदैव आराम से रहेगा

समा करे निर क्या करे समैं समैं की बात, किसी समय के दिन बड़े किसी समय की रात

हर मौसम अपना उचित काम करता है मनुष्य कुछ नहीं कर सकता

समा करे न क्या करे समैं समैं की बात, किसी समय के दिन बड़े किसी समय की रात

हर मौसम अपना उचित काम करता है मनुष्य कुछ नहीं कर सकता

राम के भक्त काठ की गुड़िया, दिन भर ठक-ठक रात आए घुसकुरिया

पुजारियों पर व्यंग है कि ये लकड़ी की पुतली की तरह हैं दिन भर ठक-ठक होती रहती है रात को सो जाते हैं

राम के भगत काठ की गुड़िया, दिन भर ठक-ठक रात आए घुसकुरिया

पुजारियों पर व्यंग है कि ये लकड़ी की पुतली की तरह हैं दिन भर ठक-ठक होती रहती है रात को सो जाते हैं

दिन गया कि रात

हरवक़त मौक़ा हासिल है, अब भी वक़्त है, मौक़ा हाथ से नहीं गया

हिन्दी, इंग्लिश और उर्दू में कहो दिन की सुने रात की के अर्थदेखिए

कहो दिन की सुने रात की

kaho din kii sune raat kiiکَہو دِن کی سُنے رات کی

टैग्ज़: अवामी

کَہو دِن کی سُنے رات کی کے اردو معانی

  • Roman
  • Urdu
  • ۔(عو) سوال کے برخلافجواب دینے والے کی نسبت مستعمل ہے۔

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कहो दिन की सुनो रात की

प्रश्नों कुछ उत्तर कुछ, उत्तर प्रश्नों के उलटा देना

कहो आम की सुने इम्ली की

रुक : कहो दिन की सुने रात की

कहो ज़मीन की सुने आसमान की

रुक : कहो दिन की सुने रात की

कहो कुपड़े की सुने गात की

जो बात है सौ उलटी है, कम फ़ह्म की निसबत कहते हैं

कहो खेत के सुने खलियान की

रुक : कहो दिन की सुने रात की

पूछो दिन की बताए रात की

सवाल कुछ जवाब कुछ (ऊल-जुलूल बातें करने वाले के लिए कहते हैं)

दिन की पूछना रात की बताना

बदहवास होना, गुस्से सदमे या बदहवासी में उल्टे सीधे बेतुके जवाब देना

रात की मालज़ादी, दिन की ख़ूज़ादी

रात को बदकारी करती है दिन को शरीफ़ बिन जाती है इस औरत के लिए मुस्तामल जो बज़ाहिर पार्सा अर दरअसल बदकार हो

दिन की रात होना

घना अंधेरा होना, बहुत अंधेरा होना

रात-दिन उस की तस्बीह है

हर वक़्त उसको याद करता है

चार दिन की चाँदनी आख़िर अँधेरी रात

कुछ दिनों की सुख है, फिर वही पीड़ा, कुछ दिनों की उन्नति है फिर अवनति

दो दिन की चाँदनी फिर अँधियारी रात

हुस्न-ओ-शबाब, जाह वाकबाल-ओ-दौलत स्रोत सब फ़ना होने वाली चीज़ें हैं

चार दिन की चाँदनी और फिर अँधेरी रात

कुछ दिनों की सुख है, फिर वही पीड़ा, कुछ दिनों की उन्नति है फिर अवनति

दो दिन की चाँदनी है फिर अँधियारी रात

रुक : दो दिन की चांदनी फिर अंधेरा पाख़

दो दिन की चाँदनी है फिर अँधेरी रात

रुक : दो दिन की चांदनी फिर अंधेरा पाख़

कभी का दिन बड़ा कभी की रात बड़ी

۔مثل۔ زمانہ ایک حال پر نہیں رہتا۔ ؎

जो साधू की माने बात, आनंद रहे दिन रात

जो नेक एवं श्रेष्ठ लोगों के सदुपदेश माने वो सदैव आराम से रहेगा

जो साधू की माने बात, रहे आनंद वो दिन रात

जो नेक एवं श्रेष्ठ लोगों के सदुपदेश माने वो सदैव आराम से रहेगा

समा करे निर क्या करे समैं समैं की बात, किसी समय के दिन बड़े किसी समय की रात

हर मौसम अपना उचित काम करता है मनुष्य कुछ नहीं कर सकता

समा करे न क्या करे समैं समैं की बात, किसी समय के दिन बड़े किसी समय की रात

हर मौसम अपना उचित काम करता है मनुष्य कुछ नहीं कर सकता

राम के भक्त काठ की गुड़िया, दिन भर ठक-ठक रात आए घुसकुरिया

पुजारियों पर व्यंग है कि ये लकड़ी की पुतली की तरह हैं दिन भर ठक-ठक होती रहती है रात को सो जाते हैं

राम के भगत काठ की गुड़िया, दिन भर ठक-ठक रात आए घुसकुरिया

पुजारियों पर व्यंग है कि ये लकड़ी की पुतली की तरह हैं दिन भर ठक-ठक होती रहती है रात को सो जाते हैं

दिन गया कि रात

हरवक़त मौक़ा हासिल है, अब भी वक़्त है, मौक़ा हाथ से नहीं गया

सूचनार्थ: औपचारिक आरंभ से पूर्व यह रेख़्ता डिक्शनरी का बीटा वर्ज़न है। इस पर अंतिम रूप से काम जारी है। इसमें किसी भी विसंगति के संदर्भ में हमें dictionary@rekhta.org पर सूचित करें। या सुझाव दीजिए

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