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हर कि

ہر ایک ، ہر وہ ، ہر جو

हर कि-ओ-मिह

हर बड़ा और छोटा, हर ख़ास-ओ-आम, हर कोई

हर कि महजूब अस्त महबूब अस्त

(फ़ारसी कहावत उर्दू में प्रयुक्त) जिस में शर्म होती है उससे लोग मुहब्बत करते हैं

हर कि ख़िदमत कर्द ऊ मख़दूम शुद

(फ़ारसी कहावत उर्दू में मुस्तामल) जो ख़लक़-ए-ख़ुदा या बुज़ुर्गों की ख़िदमत करता है इज़्ज़त पाता है , जो ख़िदमत करता है इस की ख़िदमत की जाती है, जो ख़िदमत करता है उसे इज़्ज़त मिलती है

हर कि पिसर नदारद नूर-ए-नज़र नदारद

(फ़ारसी कहावत उर्दू में मुस्तामल) जिस का बेटा नहीं उस की आँखों नूर नहीं

हर किसी की

ہر ایک کا ، سب کا

हर कि आमद बर आँ मज़ीद नुमूद

(फ़ारसी कहावत उर्दू में मुस्तामल) जो आया इस ने इस में इज़ाफ़ा किया

हर कि बाबदाँ नशीनद नेकी न बीनद

(फ़ारसी कहावत उर्दू में मुस्तामल) जो बदों के साथ बैठता है वो नेकी नहीं देखता, बरी सोहबत का नतीजा बुरा होता है

हर कि पिदर नदारद साया-ए-सर नदारद

(फ़ारसी कहावत उर्दू में मुस्तामल) जिस का बाप नहीं इस के सर पर साया नहीं

हर कि दारद तानी अंदर कार, ब मुरादत-ए-दिल रसद नाचार

(فارسی کہاوت اُردو میں مستعمل) جو شخص استقلال سے کام کرتا ہے وہ اپنی دلی مراد تک آخرکار پہنچ ہی جاتا ہے

हर कि दंदाँ दाद नान हम मी दहद

(फ़ारसी कहावत उर्दू में मुस्तामल) जिस ने दाँत दिए वही रोटी भी देगा, इंसान को रिज़्क की तलब में ज़्यादा परेशान ना होना चाहिए ख़ुदा पर भरोसा करना चाहिए

हर कि आमद 'इमारत-ए-नौ साख़्त, रफ़्त-ओ-मंज़िल ब दीगरे परदाख़्त

(फ़ारसी कहावत उर्दू में मुस्तामल) जो आया इस ने एक नई इमारत बनाई वो चला गया और मकान किसी और का हो गया, हर एक शख़्स अपने ही ख़्याल के मुताबिक़ काम करता है नीज़ नया हाकिम नया हुक्म जारी करता है , हर शख़्स अपनी फ़हम के मुताबिक़ काम करता है

हर कि ख़ूद रा बीनद ख़ुदा रा न बीनद

(फ़ारसी कहावत उर्दू में मुस्तामल) मग़रूर आदमी ख़ुदा को नहीं पाता, ख़ुद पसंद शख़्स ख़ुदा शनास नहीं होता

हर कि 'ऐब ख़ुद बीनद, अज़ दीगराँ गज़ीनद

(फ़ारसी कहावत उर्दू में मुस्तामल) जो अपना ऐब देखता है वो दूसरों से डरता है

हर कि अज़ दीदा दूर अज़ दिल दूर

(فارسی کہاوت اُردو میں مستعمل) جو سامنے نہیں ہوتا اس کا خیال بھی نہیں رہتا ، جو آنکھ سے دور وہ دل سے دور ہوتا ہے ، آنکھ اوجھل پہاڑ اوجھل

हर कि दर कान-ए-नमक रफ़्त नमक शुद

का दर कान-ए-नमक रफत नमक शुद

हर कि रा ज़र दर तराज़ूस्त ज़ोर दर बाज़ूस्त

(फ़ारसी कहावत उर्दू में मुस्तामल) जिस के पास ज़र है इस के पास ज़ोर भी है, जिस के पास पैसा है वो ताक़तवर है

हर कि ज़न न-दारद आसाइश-ए-तन न-दारद

(फ़ारसी कहावत उर्दू में प्रचलित) जिसकी बीवी नहीं उसको सुख-शांति नहीं

हर कि शक आरद काफ़िर गर्दद

(फ़ारसी कहावत उर्दू में मुस्तामल) (क़ौल की तसदीक़ के लिए कहते हैं) जो शक करे काफ़िर हो जाये

हर कि मेहनत नकशीद ब राहत नरसीद

(फ़ारसी कहावत उर्दू में मुस्तामल) अगर मेहनत नहीं करोगे तो आराम और सुकून भी नहीं मिलेगा

हर किसी से

हर एक से, हर एक आदमी से, प्रत्येक व्यक्ति से

हर कि बरादर नदारद क़ुव्वत-ए-बाज़ू नदारद

(फ़ारसी कहावत उर्दू में मुस्तामल) जिस का भाई नहीं उस की क़ुव्वत-ए-बाज़ू नहीं

हर किसी को

हर एक को

हर किसी का

ہر ایک کا ، سب کا

हर कि बा नूह नशीनद चे ग़म अज़ तूफ़ानश

(फ़ारसी कहावत उर्दू में मुस्तामल) जो नोहऑ के साथ बैठे उसे तूफ़ान नोहऑ की क्या फ़िक्र, जो हाकिम के साथ होता है उसे हाकिम से ख़तरा नहीं होता, जिस के हिमायती बड़े लोग हूँ उसे क्या ख़ौफ़ है

हर किरा सब्र नीस्त हिकमत नीस्त

(फ़ारसी कहावत उर्दू में मुस्तामल)जिस शख़्स में सब्र नहीं इस में अक़ल नहीं होती, बेसबर आदमी सोच समझ के काम नहीं कर सकता

हर कि हेच नदारद ज़हेच ग़म नदारद

(फ़ारसी कहावत उर्दू में मुस्तामल) जिस के पास कुछ नहीं होता उस को कोई ग़म नहीं होता

हर किरा नीस्त अदब लाइक़-ए-सोहबत नबुवद

(फ़ारसी कहावत उर्दू में मुस्तामल)जिस शख़्स में अदब नहीं वो सोहबत के लायक़ नहीं यानी बेअदब आदमी की सोहबत से गुरेज़ करो

हर-कि-रा पंज-रोज़ नौबत-ए-ऊस्त

(फ़ारसी कहावत उर्दू में मुस्तामल) हर किसी की बारी पाँच रोज़ की है यानी ज़िंदगी चंद रोज़ा है दाइमी नहीं है

हर-किसी

ہر ایک ، ہر آدمی ۔

हर-किह आमद ब-जहाँ अहल-ए-फ़ना ख़्वाहद-बूद

(फ़ारसी कहावत उर्दू में प्रयुक्त) जो दुनिया में आया एक दिन ज़रूर मरेगा

हर चंद कि

यद्यपि, हालाँकि, अगरचे

हर-किधर

رک : ہر کجا ۔

हर क़ीमत पर

किसी भी कीमत पर, हर तरह, चाहे कुछ हो जाए (किसी ख़ास चीज़ या अहम मक़सद को हासिल करने के मौके़ पर बोलते हैं)

हर 'ऐब कि सुल्तान ब पसनंदद हुनर अस्त

(फ़ारसी कहावत उर्दू में मुस्तामल) बादशाह जिस ऐब को पसंद करता है वो हुनर समझा जाता है , बड़ों के ऐब भी ख़ूबी हो जाते हैं , बरी बात जो हाकिम करता है लोग उसी की तक़लीद करते हैं

हर बीशा गुमाँ मबर कि ख़ाली सत, शायद कि पिलंग ख़ुफ़्ता बाशद

(शेख़ सादी का शेअर उर्दू में बतौर कहावत मुस्तामल) हर जंगल को ख़ाली मत समझो शायद इस में चीता सोया हो , मुराद : आदमी को हर जगह होशयार रहना चाहिए, ख़तरे की तरफ़ से चौकन्ना रहना चाहिए , किसी शख़्स को नाकारा नहीं समझना चाहिए

हर रोज़ 'ईद नीस्त कि हल्वा ख़ूरद कसे

(फ़ारसी कहावत उर्दू में मुस्तामल) हर रोज़ ईद नहीं है कि कोई हलवा खाए , रोज़ रोज़ उम्दा मौक़ा हाथ नहीं आता , हर रोज़ ख़ुशी हासिल नहीं होती, ज़माना एक सा नहीं रहता, (बिलउमूम ऐसे मौके़ पर मुस्तामल जब कोई एक बार कुछ पाने के बाद फिर फ़ायदे की उम्मीद रखे)

न हर कि चेहरा बर अफ़रोख़्त, दिल बरी दानद

(फ़ारसी कहावत उर्दू में मुस्तामल) हर शख़्स जो अपना चेहरा चमकाए, दिलबरी नहीं जानता, किसी बाकमाल की सी शक्ल बना लेना आसान है मगर कमाल पैदा करना मुश्किल है, ख़ूबसूरती और चीज़ है नाज़-ओ-अदा-ओ-करिश्मा और चीज़ है

हर जा कि नमक ख़ोरी नमक दान न शिकन

(फ़ारसी कहावत उर्दू में मुस्तामल) जहां नमक खाओ नमकदान को ना तोड़ो , जिस से फ़ायदा उठाओ उसे नुक़्सान ना पहुँचाओ

हर गाह कि

رک : ہرگاہ/گہہ ۔

ज़र-दार मर्द ना हर घर में रहे कि बाहर

सोने से पुरूष का शासन और प्रताप है घर में भी और बाहर भी

हर जा कि सुल्तान ख़ैमा ज़द ग़ौग़ा नमान्द 'आम रा

(फ़ारसी कहावत उर्दू में मुस्तामल) जहां बादशाह ख़ेमा लगा दे वहां आम लोगों का शोर नहीं होता, बड़ों के सामने छोटों की तौक़ीर नहीं होती , बड़ों के सामने छोटों की नहीं चलती

हर चीज़ कि दर कान नमक रफ़्त नमक शुद

(फ़ारसी कहावत उर्दू में मुस्तामल) रुक : हर चह दर कान-ए-नमक अलख

हर गुनाहे कि कुनी दर शब आदीना बकुन, ताकि अज़-सद्र-नशीनान जहन्नम बाशी

(फ़ारसी कहावत उर्दू में मुस्तामल) जो गुनाह कर जुमे की रात को कर ताकि जहन्नुम के सदर नशीनों में हो जाये , जुमे को गुनाह करना ज़्यादा अज़ाब का मूजिब है

शौक़ दर हर-दिल कि बाशद रहबरे दरकार नेस्त

फ़ारसी की कहावत उर्दू में प्रयुक्त, जिसको जिस चीज़ की रुचि होगी वो बिना किसी के बताए उसे सीखेगा रुचि वाले को मार्गदर्शक की आवश्यक्ता नहीं

हर कसे कि बाशद

कोई शख़्स क्यों ना हो

हर एक के कान में शैतान ने फूँक मार दी है कि तेरे बराबर कोई नहीं

हर एक अपने आप को लासानी समझता है

हर शबे गोयम कि फ़र्दा तर्क ईं सौदा कुनम बाज़ चूँ फ़र्दा शवद इमरोज़ रा फ़र्दा कुनम

(फ़ारसी शेर का उर्दू की कहावत के रूप में में प्रयोग) हर रात मैं कहता हूँ कि कल इस जूनून से छुटकारा पाऊँगा मगर जब कल आता है तो फिर आज को कल पर टाल देता हूँ; टालमटोल करने वाला सफल नहीं होता, जो काम करना है वह तुरंत करना चाहिए और किसी आदत को छोड़ना बहुत मुश्

हर एक बात की कुछ इंतिहा है

हर बात कहीं न कहीं समाप्त होती है

काठ की हाँडी हर बार नहीं चढ़ती

जालसाज़ी और फ़रेब बार बार नहीं चलता, नापायदार शैय का बार बार एतबार नहीं होता

मिल गए की हर गंगा

इत्तिफ़ाक़ीया मुलाक़ात और साहिब सलामत के मौक़ा पर मुस्तामल

नाऊ की सी आरसी हर किसी के पास

हरजाई के मुताल्लिक़ कहते हैं

नाव की सी आरसी हर किसी के पास

हरजाई के प्रति कहते हैं

गिर पड़े की हर गंगा

जिस को तकलीफ़ हो वो ख़ुदा को याद करता है, असहायता ज़ाहिर करने वाले के लिए बोला जाता है

भली कमाई साध की जो लागे हर के हीत

वह रुपया बहुत अच्छा जो ईश्वर की प्रसन्नता के लिए ख़र्च हो

रपट पड़े की हर गंगा

एक वाक्य जो हिंदू नहाते समय दो-दो बार या तीन-तीन बार ज़बान पर लाते हैं

हर जामा ज़ेब की इज़ार

अर्थात: हर आकर्षक पुरुष पर मोहित हो जाने वाली महिला

हर तरह की

ہر قسم کا ، ہر نوع کا ۔

हिन्दी, इंग्लिश और उर्दू में हर कि के अर्थदेखिए

हर कि

har kiہَر کِہ

ہَر کِہ کے اردو معانی

  • Roman
  • Urdu
  • ہر ایک ، ہر وہ ، ہر جو

Urdu meaning of har ki

  • Roman
  • Urdu

  • har ek, har vo, har jo

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हर कि

ہر ایک ، ہر وہ ، ہر جو

हर कि-ओ-मिह

हर बड़ा और छोटा, हर ख़ास-ओ-आम, हर कोई

हर कि महजूब अस्त महबूब अस्त

(फ़ारसी कहावत उर्दू में प्रयुक्त) जिस में शर्म होती है उससे लोग मुहब्बत करते हैं

हर कि ख़िदमत कर्द ऊ मख़दूम शुद

(फ़ारसी कहावत उर्दू में मुस्तामल) जो ख़लक़-ए-ख़ुदा या बुज़ुर्गों की ख़िदमत करता है इज़्ज़त पाता है , जो ख़िदमत करता है इस की ख़िदमत की जाती है, जो ख़िदमत करता है उसे इज़्ज़त मिलती है

हर कि पिसर नदारद नूर-ए-नज़र नदारद

(फ़ारसी कहावत उर्दू में मुस्तामल) जिस का बेटा नहीं उस की आँखों नूर नहीं

हर किसी की

ہر ایک کا ، سب کا

हर कि आमद बर आँ मज़ीद नुमूद

(फ़ारसी कहावत उर्दू में मुस्तामल) जो आया इस ने इस में इज़ाफ़ा किया

हर कि बाबदाँ नशीनद नेकी न बीनद

(फ़ारसी कहावत उर्दू में मुस्तामल) जो बदों के साथ बैठता है वो नेकी नहीं देखता, बरी सोहबत का नतीजा बुरा होता है

हर कि पिदर नदारद साया-ए-सर नदारद

(फ़ारसी कहावत उर्दू में मुस्तामल) जिस का बाप नहीं इस के सर पर साया नहीं

हर कि दारद तानी अंदर कार, ब मुरादत-ए-दिल रसद नाचार

(فارسی کہاوت اُردو میں مستعمل) جو شخص استقلال سے کام کرتا ہے وہ اپنی دلی مراد تک آخرکار پہنچ ہی جاتا ہے

हर कि दंदाँ दाद नान हम मी दहद

(फ़ारसी कहावत उर्दू में मुस्तामल) जिस ने दाँत दिए वही रोटी भी देगा, इंसान को रिज़्क की तलब में ज़्यादा परेशान ना होना चाहिए ख़ुदा पर भरोसा करना चाहिए

हर कि आमद 'इमारत-ए-नौ साख़्त, रफ़्त-ओ-मंज़िल ब दीगरे परदाख़्त

(फ़ारसी कहावत उर्दू में मुस्तामल) जो आया इस ने एक नई इमारत बनाई वो चला गया और मकान किसी और का हो गया, हर एक शख़्स अपने ही ख़्याल के मुताबिक़ काम करता है नीज़ नया हाकिम नया हुक्म जारी करता है , हर शख़्स अपनी फ़हम के मुताबिक़ काम करता है

हर कि ख़ूद रा बीनद ख़ुदा रा न बीनद

(फ़ारसी कहावत उर्दू में मुस्तामल) मग़रूर आदमी ख़ुदा को नहीं पाता, ख़ुद पसंद शख़्स ख़ुदा शनास नहीं होता

हर कि 'ऐब ख़ुद बीनद, अज़ दीगराँ गज़ीनद

(फ़ारसी कहावत उर्दू में मुस्तामल) जो अपना ऐब देखता है वो दूसरों से डरता है

हर कि अज़ दीदा दूर अज़ दिल दूर

(فارسی کہاوت اُردو میں مستعمل) جو سامنے نہیں ہوتا اس کا خیال بھی نہیں رہتا ، جو آنکھ سے دور وہ دل سے دور ہوتا ہے ، آنکھ اوجھل پہاڑ اوجھل

हर कि दर कान-ए-नमक रफ़्त नमक शुद

का दर कान-ए-नमक रफत नमक शुद

हर कि रा ज़र दर तराज़ूस्त ज़ोर दर बाज़ूस्त

(फ़ारसी कहावत उर्दू में मुस्तामल) जिस के पास ज़र है इस के पास ज़ोर भी है, जिस के पास पैसा है वो ताक़तवर है

हर कि ज़न न-दारद आसाइश-ए-तन न-दारद

(फ़ारसी कहावत उर्दू में प्रचलित) जिसकी बीवी नहीं उसको सुख-शांति नहीं

हर कि शक आरद काफ़िर गर्दद

(फ़ारसी कहावत उर्दू में मुस्तामल) (क़ौल की तसदीक़ के लिए कहते हैं) जो शक करे काफ़िर हो जाये

हर कि मेहनत नकशीद ब राहत नरसीद

(फ़ारसी कहावत उर्दू में मुस्तामल) अगर मेहनत नहीं करोगे तो आराम और सुकून भी नहीं मिलेगा

हर किसी से

हर एक से, हर एक आदमी से, प्रत्येक व्यक्ति से

हर कि बरादर नदारद क़ुव्वत-ए-बाज़ू नदारद

(फ़ारसी कहावत उर्दू में मुस्तामल) जिस का भाई नहीं उस की क़ुव्वत-ए-बाज़ू नहीं

हर किसी को

हर एक को

हर किसी का

ہر ایک کا ، سب کا

हर कि बा नूह नशीनद चे ग़म अज़ तूफ़ानश

(फ़ारसी कहावत उर्दू में मुस्तामल) जो नोहऑ के साथ बैठे उसे तूफ़ान नोहऑ की क्या फ़िक्र, जो हाकिम के साथ होता है उसे हाकिम से ख़तरा नहीं होता, जिस के हिमायती बड़े लोग हूँ उसे क्या ख़ौफ़ है

हर किरा सब्र नीस्त हिकमत नीस्त

(फ़ारसी कहावत उर्दू में मुस्तामल)जिस शख़्स में सब्र नहीं इस में अक़ल नहीं होती, बेसबर आदमी सोच समझ के काम नहीं कर सकता

हर कि हेच नदारद ज़हेच ग़म नदारद

(फ़ारसी कहावत उर्दू में मुस्तामल) जिस के पास कुछ नहीं होता उस को कोई ग़म नहीं होता

हर किरा नीस्त अदब लाइक़-ए-सोहबत नबुवद

(फ़ारसी कहावत उर्दू में मुस्तामल)जिस शख़्स में अदब नहीं वो सोहबत के लायक़ नहीं यानी बेअदब आदमी की सोहबत से गुरेज़ करो

हर-कि-रा पंज-रोज़ नौबत-ए-ऊस्त

(फ़ारसी कहावत उर्दू में मुस्तामल) हर किसी की बारी पाँच रोज़ की है यानी ज़िंदगी चंद रोज़ा है दाइमी नहीं है

हर-किसी

ہر ایک ، ہر آدمی ۔

हर-किह आमद ब-जहाँ अहल-ए-फ़ना ख़्वाहद-बूद

(फ़ारसी कहावत उर्दू में प्रयुक्त) जो दुनिया में आया एक दिन ज़रूर मरेगा

हर चंद कि

यद्यपि, हालाँकि, अगरचे

हर-किधर

رک : ہر کجا ۔

हर क़ीमत पर

किसी भी कीमत पर, हर तरह, चाहे कुछ हो जाए (किसी ख़ास चीज़ या अहम मक़सद को हासिल करने के मौके़ पर बोलते हैं)

हर 'ऐब कि सुल्तान ब पसनंदद हुनर अस्त

(फ़ारसी कहावत उर्दू में मुस्तामल) बादशाह जिस ऐब को पसंद करता है वो हुनर समझा जाता है , बड़ों के ऐब भी ख़ूबी हो जाते हैं , बरी बात जो हाकिम करता है लोग उसी की तक़लीद करते हैं

हर बीशा गुमाँ मबर कि ख़ाली सत, शायद कि पिलंग ख़ुफ़्ता बाशद

(शेख़ सादी का शेअर उर्दू में बतौर कहावत मुस्तामल) हर जंगल को ख़ाली मत समझो शायद इस में चीता सोया हो , मुराद : आदमी को हर जगह होशयार रहना चाहिए, ख़तरे की तरफ़ से चौकन्ना रहना चाहिए , किसी शख़्स को नाकारा नहीं समझना चाहिए

हर रोज़ 'ईद नीस्त कि हल्वा ख़ूरद कसे

(फ़ारसी कहावत उर्दू में मुस्तामल) हर रोज़ ईद नहीं है कि कोई हलवा खाए , रोज़ रोज़ उम्दा मौक़ा हाथ नहीं आता , हर रोज़ ख़ुशी हासिल नहीं होती, ज़माना एक सा नहीं रहता, (बिलउमूम ऐसे मौके़ पर मुस्तामल जब कोई एक बार कुछ पाने के बाद फिर फ़ायदे की उम्मीद रखे)

न हर कि चेहरा बर अफ़रोख़्त, दिल बरी दानद

(फ़ारसी कहावत उर्दू में मुस्तामल) हर शख़्स जो अपना चेहरा चमकाए, दिलबरी नहीं जानता, किसी बाकमाल की सी शक्ल बना लेना आसान है मगर कमाल पैदा करना मुश्किल है, ख़ूबसूरती और चीज़ है नाज़-ओ-अदा-ओ-करिश्मा और चीज़ है

हर जा कि नमक ख़ोरी नमक दान न शिकन

(फ़ारसी कहावत उर्दू में मुस्तामल) जहां नमक खाओ नमकदान को ना तोड़ो , जिस से फ़ायदा उठाओ उसे नुक़्सान ना पहुँचाओ

हर गाह कि

رک : ہرگاہ/گہہ ۔

ज़र-दार मर्द ना हर घर में रहे कि बाहर

सोने से पुरूष का शासन और प्रताप है घर में भी और बाहर भी

हर जा कि सुल्तान ख़ैमा ज़द ग़ौग़ा नमान्द 'आम रा

(फ़ारसी कहावत उर्दू में मुस्तामल) जहां बादशाह ख़ेमा लगा दे वहां आम लोगों का शोर नहीं होता, बड़ों के सामने छोटों की तौक़ीर नहीं होती , बड़ों के सामने छोटों की नहीं चलती

हर चीज़ कि दर कान नमक रफ़्त नमक शुद

(फ़ारसी कहावत उर्दू में मुस्तामल) रुक : हर चह दर कान-ए-नमक अलख

हर गुनाहे कि कुनी दर शब आदीना बकुन, ताकि अज़-सद्र-नशीनान जहन्नम बाशी

(फ़ारसी कहावत उर्दू में मुस्तामल) जो गुनाह कर जुमे की रात को कर ताकि जहन्नुम के सदर नशीनों में हो जाये , जुमे को गुनाह करना ज़्यादा अज़ाब का मूजिब है

शौक़ दर हर-दिल कि बाशद रहबरे दरकार नेस्त

फ़ारसी की कहावत उर्दू में प्रयुक्त, जिसको जिस चीज़ की रुचि होगी वो बिना किसी के बताए उसे सीखेगा रुचि वाले को मार्गदर्शक की आवश्यक्ता नहीं

हर कसे कि बाशद

कोई शख़्स क्यों ना हो

हर एक के कान में शैतान ने फूँक मार दी है कि तेरे बराबर कोई नहीं

हर एक अपने आप को लासानी समझता है

हर शबे गोयम कि फ़र्दा तर्क ईं सौदा कुनम बाज़ चूँ फ़र्दा शवद इमरोज़ रा फ़र्दा कुनम

(फ़ारसी शेर का उर्दू की कहावत के रूप में में प्रयोग) हर रात मैं कहता हूँ कि कल इस जूनून से छुटकारा पाऊँगा मगर जब कल आता है तो फिर आज को कल पर टाल देता हूँ; टालमटोल करने वाला सफल नहीं होता, जो काम करना है वह तुरंत करना चाहिए और किसी आदत को छोड़ना बहुत मुश्

हर एक बात की कुछ इंतिहा है

हर बात कहीं न कहीं समाप्त होती है

काठ की हाँडी हर बार नहीं चढ़ती

जालसाज़ी और फ़रेब बार बार नहीं चलता, नापायदार शैय का बार बार एतबार नहीं होता

मिल गए की हर गंगा

इत्तिफ़ाक़ीया मुलाक़ात और साहिब सलामत के मौक़ा पर मुस्तामल

नाऊ की सी आरसी हर किसी के पास

हरजाई के मुताल्लिक़ कहते हैं

नाव की सी आरसी हर किसी के पास

हरजाई के प्रति कहते हैं

गिर पड़े की हर गंगा

जिस को तकलीफ़ हो वो ख़ुदा को याद करता है, असहायता ज़ाहिर करने वाले के लिए बोला जाता है

भली कमाई साध की जो लागे हर के हीत

वह रुपया बहुत अच्छा जो ईश्वर की प्रसन्नता के लिए ख़र्च हो

रपट पड़े की हर गंगा

एक वाक्य जो हिंदू नहाते समय दो-दो बार या तीन-तीन बार ज़बान पर लाते हैं

हर जामा ज़ेब की इज़ार

अर्थात: हर आकर्षक पुरुष पर मोहित हो जाने वाली महिला

हर तरह की

ہر قسم کا ، ہر نوع کا ۔

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