खोजे गए परिणाम

सहेजे गए शब्द

"घास खाए दिन कटे तो सब कोई खाए" शब्द से संबंधित परिणाम

क्या कहा

(जब कोई अनुचित रूप से कुछ कहता है, तो उसे व्यंग्य में कहते है) फिर से कहना, सही नहीं कहा

क्या कहा है

(प्रशंसा के अवसर पर) क्या अच्छी कविता कही है, वाह वाह, सुबहान अल्लाह

क्या खाए

۔ کس برتے پر۔ بھلا ہم غریب آدمی کو ایسی ویسی باتوں کی کیا قدر میکے سے سُسرال تک نون تیل لکڑی ہی سے زمانہ فرصت نہیں دیتا۔ بھلام ہم دوسری کی بات کی کیا خبر سکتے ہیں اور کیا کھا کے کوئی بات کرسکتے ہیں۔

क्या खा के

کس بِرتے پر ، کس طرح .

क्या खा कर

کس بِرتے پر ، کس طرح .

क्या ख़ाक

ख़ाक नहीं, कुछ नहीं, क्यों कर, कैसे, किस उमीद पर

क्या ख़बर

कुछ ख़बर नहीं, मालूम नहीं, क्या मालूम

क्या ख़ातिर

किस वास्ते, किस लिए

क्या ख़ाक है

कुछ भी नहीं है, कुछ मयस्सर नहीं, बिलकुल ख़ाली है (इंतिहाई महरूमी के आलम में कहते हैं)

क्या ख़ाक रहा

(व्यंगात्मक) कुछ नहीं बचा, कुछ नहीं रहा

क्या ख़ाक लुटी थी

क्या बाँटी गई थी

क्या क्या कुछ कहा

कौन कौन सी बात न कही, कौन कौन सी गाली न दी, बहुत कुछ बुरा भला कहा

ये क्या कहा

ये क्यों कह दिया, ऐसी बात क्यों कह दी, ऐसा नहीं कहना चाहिए

क्या खट राग गाते हो

क्या बकवास करते हो, क्या बेहूदा बकते हो

भूके से कहा दो और दो क्या, कहा चार रोटियाँ

स्वार्थी व्यक्ति के संबंध में कहते हैं

कुछ लेते हो, कहा अपना काम क्या है, कुछ देते हो, कहा यह शरारत बंदे को नहीं आती

लेने को तैयार, देने से नकारना

क्या ख़ू निकाली है

बुरी आदत सीखी है

सत्तू खा के शुक्र क्या

थोड़ी सी चीज़ से प्रसन्न हो गए, संतोषी व्यक्ति है

कोई है

नौकर को बुलाने की आवाज़, क्या कोई शख़्स मौजूद है

कोई हो

कोई हो, किसी की विशेषता नहीं

धर्म कोई खोए धन कोई पावे

ईमान जाये किसी का धन या दौलत मिले किसी को, किसी के लाभ के लिए अपना ईमान खोना

धर्म कोई खोए धन कोई ले

ईमान जाये किसी का धन या दौलत मिले किसी को, किसी के लाभ के लिए अपना ईमान खोना

पकाए सो खाए नहीं खाए कोई और, दौड़े सो पाए नहीं पाए कोई और

जो परिश्रम करेगा लाभ उठाएगा जो जी चुराएगा रह जाएगा

जने कोई गोंद , मखाने खाए कोई

(ओ) जब मुसीबत कोई उठाए फ़ायदा कोई और ले तो कहते हैं

धर्म-हार धान कोई खाए

बेईमानी से हर कोई कमा खाता है

धन ले कोई, धर्म खोए कोई

झूठी गवाही देकर अपने आस्था को नष्ट करना

अंधा कहे मैं सरग चढ़ मूतूँ और मुझे कोई न देखे

हर एक यह चाहता है कि जो चाहे करे कोई उसपर आपत्ति न करे

घास खाए दिन कटे तो सब कोई खाए

यदि रूखी सुखी खाने से बहुत हो जाए तो कोई परिश्रम सहन नहीं करेगा, यदि छोटी-छोटी बेकार बातों /वस्तुओं से जीवन आराम से व्यतीत हो जाए तो सभी लोग आराम से रहें

सास गई गाँव बहू कहे मैं क्या क्या खाऊँ

while the cat is away the mice will play

कोई कौड़ी के दो बेर भी हाथ से न खाए

सख़्त ज़लील-ओ-बेवुक़त है

दिल्ली से मैं आऊँ ख़बर कहे मेरा भाई, घर से आए कोई संदेसा दे कोई

ये कहावत उन लोगों के प्रति बोलते हैं जिन को किसी बात का ज्ञान होना आवश्यक समझा जाता है मगर वो लापरवाही या मूर्खता के कारण इस बात से अनभिज्ञ या अज्ञानी हों

पकाए सो खाए नहीं खाए कोई और

जो परिश्रम करेगा लाभ उठाएगा जो जी चुराएगा रह जाएगा

ज़रा कोई कुछ कहे

घड़ी में औलिया घड़ी में भूत, थोड़ी सी अप्रिय बात किसी के मुँह से निकले, कोई टोके

मुझे बुढ़िया न कहो कोई , मैं ने जवानों की भी 'अक़्ल खोई

चालाक ज़ईफ़ अपने मुताल्लिक़ कहता है कि वो जवानों को उंगलीयों पहुंचा सकता है , ज़ईफ़ चालाक औरत का क़ौल है कि में बढ़िया हूँ तो क्या हवा में नौजवानों को भी फ़रेफ़्ता करलेती हूँ , बुज़ुर्गों की बनिसबत जवान नापुख़्ता कार होते हैं, जवान बुज़ुर्गों से इलम-ओ-शऊर हासिल करते हैं

जो कोई खाए निबाह के ज्वार, मूल बने वो मूँड गंवार

जो जन्म भर ज्वार खाता रहता है वो मूर्ख एवं गंवार रहता है

जो कोई खाए निबाह के ज्वार, मूल बने वो मूँढ गंवार

जो जन्म भर ज्वार खाता रहता है वो मूर्ख एवं गंवार रहता है

सास गई गाँव, बहू कहे मैं क्या क्या खाउं

सास की ग़ैरमौजूदगी में बहू मज़े उड़ाती है

सब कोई झूमर पहिरे लंगडी कहे हम-हूँ

हर एक को देख कर वो भी जिसे किसी चीज़ की आवश्यकता न हो रेस करे तो कहते हैं

कहे से कोई कुँएँ में नही गिरता

दूसरे के कहने से कोई नुक़्सान वाला काम नहीं करता, हर एक अपना अच्छा-बुरा ख़ूब समझता है

गाय जब दूब से दोस्ती करे क्या खाए

दूसरों का लिहाज़ करने वाला नुक़्सान उठाता है

गाय जब दूब से सुलूक करे क्या खाए

दूसरों का लिहाज़ करने वाला हानि उठाता है

गाय जब दूब से सुलूक करे तो खाए क्या

दूसरों का लिहाज़ करने वाला हानि उठाता है

कहो तो सही क्या हो

ख़ूब आदमी हो

बन में उपजे सब कोई खाए, घर में उपजे घर ही खाए

फूट जंगल में पैदा हो तो सब खाएँ लेकिन घर में पैदा हो जाए तो घर ही तबाह हो जाए

लाख कोई कहे

۔हर चंद कोई कहे।

छलनी क्या कहे सोप को कि जिस में नो सौ छेद

बेअमल इंसान के मुताल्लिक़ कहते हैं जो दूसरों को नसीहत करता हो और ख़ूब उयूब में मुबतला हो

नाम क्या शकर-पारा, रोटी खाए दस-बारा, पानी कितना है मटका सारा, काम करने को लड़का बिचारा

खाता बहुत है परंतु काम नहीं करता

ब्याह में खाई बूर, फिर क्या खाएगी धूर

यदि ब्याह में सब ख़र्च कर दिया तो फिर गुज़र-बसर कैसे होगी

धी से कहे बहू ने कान किए

रुक : धी री में तुझ को कहूं अलख

वैसा ही तो को फल मिले जैसा बीज बोवाए, नीम बोय के निकले गाँडा कोई न खाए

जैसा करोगे वैसा भरोगे

कहे से कोई कुएँ में नहीं गिरता

दूसरे के कहने से कोई हानिकारक क्रिया नहीं करता, सभी अपना अच्छा और बुरा अच्छे से समझते हैं

क्या गुप-चुप के लड्डू खाए हैं

बोलते क्यों नहीं, चुप क्यों हो

मैं ने क्या उसकी खीर खाई है

मैं आभारी नहीं हूँ

कहे से कोई कुँवें में नहीं गिरता

दूसरे के कहने से कोई हानिकारक क्रिया नहीं करता, सभी अपना अच्छा और बुरा अच्छे से समझते हैं

सब गुनों पूरी कोई न कहो अधूरी

चालाक और अय्यार औरत के मुताल्लिक़ कहते हैं

ब्याह में खाए बूर, फिर क्या खाएगी धूर

यदि ब्याह में सब ख़र्च कर दिया तो फिर गुज़र-बसर कैसे होगी

जो कोई खाए चने की टूक, पानी पीवे सौ सौ घूँट

चने की मिठाई बहुत प्यास लगाती है, जो कोई बुरा काम करे उसे दुख अवश्य होता है

सब गुन पूरे कोई न कहे लंडूरे

रुक : सब गुण भरी मेरी लाडो, कौन कहे लनडूओरी

मैं ने क्या तुम्हारी खीर खाई है

मैं आभारी नहीं हूँ

जो कोई खाए चने की ढूंक, पानी पीवे सौ सौ घूँट

चने की मिठाई बहुत प्यास लगाती है, जो कोई बुरा काम करे उसे दुख अवश्य होता है

हिन्दी, इंग्लिश और उर्दू में घास खाए दिन कटे तो सब कोई खाए के अर्थदेखिए

घास खाए दिन कटे तो सब कोई खाए

ghaas khaa.e din kaTe to sab ko.ii khaa.eگھاس کھائے دِن کَٹے تو سب کوئی کھائے

कहावत

घास खाए दिन कटे तो सब कोई खाए के हिंदी अर्थ

  • यदि रूखी सुखी खाने से बहुत हो जाए तो कोई परिश्रम सहन नहीं करेगा, यदि छोटी-छोटी बेकार बातों /वस्तुओं से जीवन आराम से व्यतीत हो जाए तो सभी लोग आराम से रहें
  • ज़िंदगी साधारण एवं व्यर्थ बातों / वस्तुओं से आराम से कटे तो सारे व्यक्ति आराम से आयु काटें

گھاس کھائے دِن کَٹے تو سب کوئی کھائے کے اردو معانی

  • Roman
  • Urdu
  • جس چیز کی ضرورت ہوتی ہے اسی چیز سے وہ ضرورت پوری بھی ہوتی ہے، اگر روکھی سوکھی کھا لینا کافی ہو تو کوئی محنت و مشقت کرنے کا روادار نہ ہو
  • زندگی معمولی اور ناکارہ باتوں/ چیزوں سے آرام سے کٹے تو تمام لوگ آرام سے اپنی زندگی کاٹیں

Urdu meaning of ghaas khaa.e din kaTe to sab ko.ii khaa.e

  • Roman
  • Urdu

  • jis chiiz kii zaruurat hotii hai isii chiiz se vo zaruurat puurii bhii hotii hai, agar ruukhii suukhii kha lenaa kaafii ho to ko.ii mehnat-o-mashaqqat karne ka ravaadaar na ho
  • zindgii maamuulii aur naakaara baaton/ chiizo.n se aaraam se kaTe to tamaam log aaraam se apnii zindgii kaaTe.n

खोजे गए शब्द से संबंधित

क्या कहा

(जब कोई अनुचित रूप से कुछ कहता है, तो उसे व्यंग्य में कहते है) फिर से कहना, सही नहीं कहा

क्या कहा है

(प्रशंसा के अवसर पर) क्या अच्छी कविता कही है, वाह वाह, सुबहान अल्लाह

क्या खाए

۔ کس برتے پر۔ بھلا ہم غریب آدمی کو ایسی ویسی باتوں کی کیا قدر میکے سے سُسرال تک نون تیل لکڑی ہی سے زمانہ فرصت نہیں دیتا۔ بھلام ہم دوسری کی بات کی کیا خبر سکتے ہیں اور کیا کھا کے کوئی بات کرسکتے ہیں۔

क्या खा के

کس بِرتے پر ، کس طرح .

क्या खा कर

کس بِرتے پر ، کس طرح .

क्या ख़ाक

ख़ाक नहीं, कुछ नहीं, क्यों कर, कैसे, किस उमीद पर

क्या ख़बर

कुछ ख़बर नहीं, मालूम नहीं, क्या मालूम

क्या ख़ातिर

किस वास्ते, किस लिए

क्या ख़ाक है

कुछ भी नहीं है, कुछ मयस्सर नहीं, बिलकुल ख़ाली है (इंतिहाई महरूमी के आलम में कहते हैं)

क्या ख़ाक रहा

(व्यंगात्मक) कुछ नहीं बचा, कुछ नहीं रहा

क्या ख़ाक लुटी थी

क्या बाँटी गई थी

क्या क्या कुछ कहा

कौन कौन सी बात न कही, कौन कौन सी गाली न दी, बहुत कुछ बुरा भला कहा

ये क्या कहा

ये क्यों कह दिया, ऐसी बात क्यों कह दी, ऐसा नहीं कहना चाहिए

क्या खट राग गाते हो

क्या बकवास करते हो, क्या बेहूदा बकते हो

भूके से कहा दो और दो क्या, कहा चार रोटियाँ

स्वार्थी व्यक्ति के संबंध में कहते हैं

कुछ लेते हो, कहा अपना काम क्या है, कुछ देते हो, कहा यह शरारत बंदे को नहीं आती

लेने को तैयार, देने से नकारना

क्या ख़ू निकाली है

बुरी आदत सीखी है

सत्तू खा के शुक्र क्या

थोड़ी सी चीज़ से प्रसन्न हो गए, संतोषी व्यक्ति है

कोई है

नौकर को बुलाने की आवाज़, क्या कोई शख़्स मौजूद है

कोई हो

कोई हो, किसी की विशेषता नहीं

धर्म कोई खोए धन कोई पावे

ईमान जाये किसी का धन या दौलत मिले किसी को, किसी के लाभ के लिए अपना ईमान खोना

धर्म कोई खोए धन कोई ले

ईमान जाये किसी का धन या दौलत मिले किसी को, किसी के लाभ के लिए अपना ईमान खोना

पकाए सो खाए नहीं खाए कोई और, दौड़े सो पाए नहीं पाए कोई और

जो परिश्रम करेगा लाभ उठाएगा जो जी चुराएगा रह जाएगा

जने कोई गोंद , मखाने खाए कोई

(ओ) जब मुसीबत कोई उठाए फ़ायदा कोई और ले तो कहते हैं

धर्म-हार धान कोई खाए

बेईमानी से हर कोई कमा खाता है

धन ले कोई, धर्म खोए कोई

झूठी गवाही देकर अपने आस्था को नष्ट करना

अंधा कहे मैं सरग चढ़ मूतूँ और मुझे कोई न देखे

हर एक यह चाहता है कि जो चाहे करे कोई उसपर आपत्ति न करे

घास खाए दिन कटे तो सब कोई खाए

यदि रूखी सुखी खाने से बहुत हो जाए तो कोई परिश्रम सहन नहीं करेगा, यदि छोटी-छोटी बेकार बातों /वस्तुओं से जीवन आराम से व्यतीत हो जाए तो सभी लोग आराम से रहें

सास गई गाँव बहू कहे मैं क्या क्या खाऊँ

while the cat is away the mice will play

कोई कौड़ी के दो बेर भी हाथ से न खाए

सख़्त ज़लील-ओ-बेवुक़त है

दिल्ली से मैं आऊँ ख़बर कहे मेरा भाई, घर से आए कोई संदेसा दे कोई

ये कहावत उन लोगों के प्रति बोलते हैं जिन को किसी बात का ज्ञान होना आवश्यक समझा जाता है मगर वो लापरवाही या मूर्खता के कारण इस बात से अनभिज्ञ या अज्ञानी हों

पकाए सो खाए नहीं खाए कोई और

जो परिश्रम करेगा लाभ उठाएगा जो जी चुराएगा रह जाएगा

ज़रा कोई कुछ कहे

घड़ी में औलिया घड़ी में भूत, थोड़ी सी अप्रिय बात किसी के मुँह से निकले, कोई टोके

मुझे बुढ़िया न कहो कोई , मैं ने जवानों की भी 'अक़्ल खोई

चालाक ज़ईफ़ अपने मुताल्लिक़ कहता है कि वो जवानों को उंगलीयों पहुंचा सकता है , ज़ईफ़ चालाक औरत का क़ौल है कि में बढ़िया हूँ तो क्या हवा में नौजवानों को भी फ़रेफ़्ता करलेती हूँ , बुज़ुर्गों की बनिसबत जवान नापुख़्ता कार होते हैं, जवान बुज़ुर्गों से इलम-ओ-शऊर हासिल करते हैं

जो कोई खाए निबाह के ज्वार, मूल बने वो मूँड गंवार

जो जन्म भर ज्वार खाता रहता है वो मूर्ख एवं गंवार रहता है

जो कोई खाए निबाह के ज्वार, मूल बने वो मूँढ गंवार

जो जन्म भर ज्वार खाता रहता है वो मूर्ख एवं गंवार रहता है

सास गई गाँव, बहू कहे मैं क्या क्या खाउं

सास की ग़ैरमौजूदगी में बहू मज़े उड़ाती है

सब कोई झूमर पहिरे लंगडी कहे हम-हूँ

हर एक को देख कर वो भी जिसे किसी चीज़ की आवश्यकता न हो रेस करे तो कहते हैं

कहे से कोई कुँएँ में नही गिरता

दूसरे के कहने से कोई नुक़्सान वाला काम नहीं करता, हर एक अपना अच्छा-बुरा ख़ूब समझता है

गाय जब दूब से दोस्ती करे क्या खाए

दूसरों का लिहाज़ करने वाला नुक़्सान उठाता है

गाय जब दूब से सुलूक करे क्या खाए

दूसरों का लिहाज़ करने वाला हानि उठाता है

गाय जब दूब से सुलूक करे तो खाए क्या

दूसरों का लिहाज़ करने वाला हानि उठाता है

कहो तो सही क्या हो

ख़ूब आदमी हो

बन में उपजे सब कोई खाए, घर में उपजे घर ही खाए

फूट जंगल में पैदा हो तो सब खाएँ लेकिन घर में पैदा हो जाए तो घर ही तबाह हो जाए

लाख कोई कहे

۔हर चंद कोई कहे।

छलनी क्या कहे सोप को कि जिस में नो सौ छेद

बेअमल इंसान के मुताल्लिक़ कहते हैं जो दूसरों को नसीहत करता हो और ख़ूब उयूब में मुबतला हो

नाम क्या शकर-पारा, रोटी खाए दस-बारा, पानी कितना है मटका सारा, काम करने को लड़का बिचारा

खाता बहुत है परंतु काम नहीं करता

ब्याह में खाई बूर, फिर क्या खाएगी धूर

यदि ब्याह में सब ख़र्च कर दिया तो फिर गुज़र-बसर कैसे होगी

धी से कहे बहू ने कान किए

रुक : धी री में तुझ को कहूं अलख

वैसा ही तो को फल मिले जैसा बीज बोवाए, नीम बोय के निकले गाँडा कोई न खाए

जैसा करोगे वैसा भरोगे

कहे से कोई कुएँ में नहीं गिरता

दूसरे के कहने से कोई हानिकारक क्रिया नहीं करता, सभी अपना अच्छा और बुरा अच्छे से समझते हैं

क्या गुप-चुप के लड्डू खाए हैं

बोलते क्यों नहीं, चुप क्यों हो

मैं ने क्या उसकी खीर खाई है

मैं आभारी नहीं हूँ

कहे से कोई कुँवें में नहीं गिरता

दूसरे के कहने से कोई हानिकारक क्रिया नहीं करता, सभी अपना अच्छा और बुरा अच्छे से समझते हैं

सब गुनों पूरी कोई न कहो अधूरी

चालाक और अय्यार औरत के मुताल्लिक़ कहते हैं

ब्याह में खाए बूर, फिर क्या खाएगी धूर

यदि ब्याह में सब ख़र्च कर दिया तो फिर गुज़र-बसर कैसे होगी

जो कोई खाए चने की टूक, पानी पीवे सौ सौ घूँट

चने की मिठाई बहुत प्यास लगाती है, जो कोई बुरा काम करे उसे दुख अवश्य होता है

सब गुन पूरे कोई न कहे लंडूरे

रुक : सब गुण भरी मेरी लाडो, कौन कहे लनडूओरी

मैं ने क्या तुम्हारी खीर खाई है

मैं आभारी नहीं हूँ

जो कोई खाए चने की ढूंक, पानी पीवे सौ सौ घूँट

चने की मिठाई बहुत प्यास लगाती है, जो कोई बुरा काम करे उसे दुख अवश्य होता है

संदर्भग्रंथ सूची: रेख़्ता डिक्शनरी में उपयोग किये गये स्रोतों की सूची देखें .

सुझाव दीजिए (घास खाए दिन कटे तो सब कोई खाए)

नाम

ई-मेल

प्रतिक्रिया

घास खाए दिन कटे तो सब कोई खाए

चित्र अपलोड कीजिएअधिक जानिए

नाम

ई-मेल

प्रदर्शित नाम

चित्र संलग्न कीजिए

चित्र चुनिए
(format .png, .jpg, .jpeg & max size 4MB and upto 4 images)

सूचनाएँ और जानकारी प्राप्त करने के लिए सदस्यता लें

सदस्य बनिए
बोलिए

Delete 44 saved words?

क्या आप वास्तव में इन प्रविष्टियों को हटा रहे हैं? इन्हें पुन: पूर्ववत् करना संभव नहीं होगा

Want to show word meaning

Do you really want to Show these meaning? This process cannot be undone