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नहीं तो नहीं

इनकार सही, नहीं सही, कुछ डर नहीं, क्या डर है

नहीं-तो

वर्ना, यदि, अन्यथा, बसूरत-ए-दीगर

जान नहीं तो जहान नहीं

सारा मज़ा जिंदगी के साथ है

और नहीं तो

of course, what else? and otherwise

करो तो सवाब नहीं, न करो तो 'अज़ाब नहीं

ऐसा काम जिसके करने या न करने से न कुछ भलाई हो न बुराई

ये तो नहीं

۔ये अमर वाक़िया नहीं।

आया तो नोश नहीं तो फ़रामोश

बहुत आत्मसंतोषी होना, कुछ मिल गया तो खा लिया वर्ना भूखे ही सो गए

रोज़ी नहीं तो रोज़ा

रोज़गार की तदबीर ना निकली तो फ़ाक़ा, मुआमला आर या पार होने या किसी हतमी नतीजा के लिए ती्यार होने के मौक़ा पर मुस्तामल

भंग तो नहीं खाई

होश में तो हो, कुछ बावले तो नहीं हो गए

बनी तो भाई नहीं तो दुश्मनाई

फ़ायदे के लिए दोस्त बनते हैं नहीं तो दुश्मन हैं

आई तो नोश नहीं तो फ़रामोश

कुछ मिला तो अच्छी बात नहीं तो सब्र के सिवा कोई चारा नहीं, आई तो रोज़ी नहीं तो रोज़ा

आई तो रमाई नहीं तो फ़क़त चारपाई

मिल गई तो मज़ा लिए अन्यथा चारपाई पर अकेले सोकर समय बिताया, काम बना तो बना नहीं तो कोई बात नहीं

बसे तो गूजर , नहीं तो ऊजड़

वो बस्ती जो वीरान पड़ी रहे या निचले तबक़े के लोगों से आबाद होजाए (निज़ाम उद्दीन औलिया की बददुआ जो उन्हों ने फ़िरोज़ तुग़ल्लुक़ से नाराज़ होकर इस के क़िले को दी थी अब ज़रब-उल-मसल

बुझना तो रोज़ी, नहीं तो रोज़ा

अत्यधिक निर्धनता स्पष्ट करने के लिए प्रयुक्त

लगी तो रोज़ी, नहीं तो रोज़ा

मिल गया तो खा लिया वर्ना उपवास रख लिया अर्थात मिला तो खा लिया नहीं तो व्रत समझो, अत्यधिक निर्धनता की ओर इशारा

और नहीं तो क्या

यही बात तो है, निश्चित रूप से यही है, बेशक ऐसा ही है

गिलहरी पेड़ा तो नही माँगती

(ओ) क्या बुरा काम (जमा) कराने को दिल चाहता है, क्या कुझाती तो नहीं

रूपया तो शैख़, नहीं तो जुलाहा

रुपया से आदमी की इज़्ज़त होती है, ज़र है तो नर है वर्ना ख़र है

रूपया तो शैख़, नहीं तो जुलाहा

रुपया से आदमी की सम्मान होता है

और कुछ नहीं तो

(this or then) if nothing else

आया तो नोश नहीं फ़रामोश

कुछ मिल गया तो खा लिया अन्यथा उपवास ही से पड़ रहे

आई रोज़ी नहीं तो रोज़ा

कुछ मिल गया तो खा पी लिया नहीं तो भूखा रह गया, भरोसे और संतोष पर गुज़र बसर है

कमबख़्ती तो नहीं आई

क्या मुसीबत आई है, खोए दिन तो नहीं आए, पिटने को तो मन नहीं कर रहा है

मछलियाँ तो नहीं कि सरा जाएँगी

ऐसी क्या जल्दी है, आमतौर पर बेटी की शादी के संबंध में कहते हैं

मानो तो देव नहीं तो भेंट कालियो

रुक : मानव तो देवता अलख

इतने तो नहीं हो

इतनी शक्ति या भाग्य में नहीं है

प्रजा नहीं तो राजा कहाँ

जनता नहीं तो हाकिम भी नहीं

सर तो नहीं फिरा

(व्यंग्य) बुरा समय तो नहीं आया, बुद्धि भ्रष्ट तो नहीं हो गया

काटो तो लहू नहीं

बहुत भयभीत था, बहुत अधिक सदमे में था

काटो तो लहू नहीं

बहुत भयभीत था, बहुत अधिक सदमे में था

सर तो नहीं कुझाता

(तंज़न) शामत आई है, मार खाने को जी चाहता है

काटो तो ख़ून नहीं

बहुत भयभीत था, बहुत अधिक सदमे में था

मानो तो देव नहीं तो भेत कालियो

रुक : मानव तो देवता अलख

मानो तो देवता नहीं मानो तो पत्थर

एतिक़ाद ही से किसी की इज़्ज़त-ओ-हुर्मत की जाती है, अगर एतिक़ाद नहीं तो कुछ भी नहीं

मुँह का निवाला तो नहीं है

सहज कार्य नहीं है

बजी तो बजाई नहीं तोड़ खाई

उस व्यक्ति के लिए बोलते हैं जो किसी वस्तु को बर्बाद न होने दे और हर तरह से अपने काम में लाए

मानो तो देवी नहीं मानो तो पत्थर

एतिक़ाद ही से किसी की इज़्ज़त-ओ-हुर्मत की जाती है, अगर एतिक़ाद नहीं तो कुछ भी नहीं

रक्खे तो पीत, नहीं तो पलीत

यदि प्रेम को सदैव निश्चित रक्खे तो बहुत अच्छी बात है वर्ना बहुत बुरी

यहाँ कुछ नाल तो नहीं गड़ा

यहां तुम पैदा तो नहीं हुए जो इस क़दर दावा और इस्तिहक़ाक़ जताते हो यानी ये जगह कोई वतन मौलिद तो नहीं कि छूट ना सके , जहां सींग समाएं गे चले जाऐंगे

यहाँ कुछ नाल तो नहीं गड़ी

यहां तुम पैदा तो नहीं हुए जो इस क़दर दावा और इस्तिहक़ाक़ जताते हो यानी ये जगह कोई वतन मौलिद तो नहीं कि छूट ना सके , जहां सींग समाएं गे चले जाऐंगे

घर से लड़कर तो नहीं चले

कोई ज़बरदस्ती बिगड़ता और जघड़ता है और ख़्वाहमख़्वाह किसी के सर होता है तो ये जुमला कहते हैं

पढ़े तो हैं पर गुने नहीं

ज्ञान तो प्राप्त कर लिया है परंतु अनुभव नहीं

अकेली तो लकड़ी भी नहीं जलती

अकेला आदमी काम अच्छी तरह नहीं कर सकता

आया तो नोश नहीं वर्ना ख़ामोश

बहुत आत्मसंतोषी होना

अपनी तो ये देह भी नहीं

मनुष्य का अपने शरीर पर भी अधिकार नहीं यह ईश्वर का है

पढ़े तो हैं पर गुणी नहीं

ज्ञान तो प्राप्त कर लिया है परंतु अनुभव नहीं

रक्खे तो प्रीत, नहीं तो पलीत

यदि प्रेम को सदैव निश्चित रक्खे तो बहुत अच्छी बात है वर्ना बहुत बुरी

वो नहीं तो उस का भाई

एक नहीं तो दूसरा सही, काम केवल एक पर समाप्त नहीं, किसी ख़ास आदमी के न होने से काम रुकता नहीं

कुछ शामत तो आई नहीं है

ज़बान दराज़-ओ-बेअदब से रंजिश के अंदाज़ में गुफ़्तगु , दोस्त से फ़र्त मुहब्बत और तपाक के इज़हार के मौक़ा पर मुस्तामल

लगा तो तीर नहीं तो तुक्का

आदमी को हिम्मत नहीं हारना चाहिए

भाई तो खाई नहीं छींके धर उठाई

जो पसंद आया खाया नहीं तो दूर किया

बल तो अपना बल, नहीं तो जाए जल

भरोसा अपने ही बल पर करना चाहिये अगर अपना बल नहीं तो पराया बल बेकार है

ये तो कुछ बात नहीं

यह ग़लत है, यह ठीक नहीं, ऐसी बात नहीं है, ऐसा नहीं हो सकता

काटो तो लहू नहीं बदन में

बहुत भयभीत था, बहुत अधिक सदमे में था

काटो तो ख़ून नहीं बदन में

बहुत भयभीत था, बहुत अधिक सदमे में था

पढ़ो तो पढ़ो नहीं पिंजरा ख़ाली करो

काम करना है तो करो नहीं तो जाओ

खात पड़े तो खेत नहीं तो रेत का रेत

ख़र्च करे तो काम बनेगा नहीं तो बिगड़ेगा, जब तक खेत में खात् ना पड़े ज़मीन काबिल-ए-ज़िराअत नहीं होती

बोलो तो बोलो, नहीं पिंजड़ा ख़ाली करो

तोते को कहा जाता है कि यदि बातें न करोगे तो निकाल देंगे

टूटी है तो किसी से जुड़ी नहीं और जुड़ी है तो कोई तोड़ सकता नहीं

बीमार आदमी को सांत्वना देने के लिए कहते हैं

यहाँ कुछ माल तो नहीं गड़ा है

जहाँ कोई अपना दावा या विशेषाधिकार जताता है, वहाँ ऐसा कहा जाता है

हिन्दी, इंग्लिश और उर्दू में बोलो तो बोलो, नहीं पिंजरा ख़ाली करो के अर्थदेखिए

बोलो तो बोलो, नहीं पिंजरा ख़ाली करो

bolo to bolo, nahii.n pinjraa KHaalii karoبولو تو بولو، نہیں پنجرا خالی کرو

अथवा : बोलो तो बोलो, नहीं पिंजड़ा ख़ाली करो

कहावत

बोलो तो बोलो, नहीं पिंजरा ख़ाली करो के हिंदी अर्थ

  • तोते को कहा जाता है कि यदि बातें न करोगे तो निकाल देंगे
  • या तो अच्छी तरह रहो या फिर यहाँ से जाओ

بولو تو بولو، نہیں پنجرا خالی کرو کے اردو معانی

  • Roman
  • Urdu
  • طوطے کو کہا جاتا ہے کہ اگر باتیں نہ کرو گے تو نکال دیں گے
  • یا تو اچھی طرح رہو یا پھر یہاں سے جاؤ

Urdu meaning of bolo to bolo, nahii.n pinjraa KHaalii karo

  • Roman
  • Urdu

  • tote ko kahaa jaataa hai ki agar baate.n na karoge to nikaal denge
  • ya to achchhii tarah raho ya phir yahaa.n se jaa.o

खोजे गए शब्द से संबंधित

नहीं तो नहीं

इनकार सही, नहीं सही, कुछ डर नहीं, क्या डर है

नहीं-तो

वर्ना, यदि, अन्यथा, बसूरत-ए-दीगर

जान नहीं तो जहान नहीं

सारा मज़ा जिंदगी के साथ है

और नहीं तो

of course, what else? and otherwise

करो तो सवाब नहीं, न करो तो 'अज़ाब नहीं

ऐसा काम जिसके करने या न करने से न कुछ भलाई हो न बुराई

ये तो नहीं

۔ये अमर वाक़िया नहीं।

आया तो नोश नहीं तो फ़रामोश

बहुत आत्मसंतोषी होना, कुछ मिल गया तो खा लिया वर्ना भूखे ही सो गए

रोज़ी नहीं तो रोज़ा

रोज़गार की तदबीर ना निकली तो फ़ाक़ा, मुआमला आर या पार होने या किसी हतमी नतीजा के लिए ती्यार होने के मौक़ा पर मुस्तामल

भंग तो नहीं खाई

होश में तो हो, कुछ बावले तो नहीं हो गए

बनी तो भाई नहीं तो दुश्मनाई

फ़ायदे के लिए दोस्त बनते हैं नहीं तो दुश्मन हैं

आई तो नोश नहीं तो फ़रामोश

कुछ मिला तो अच्छी बात नहीं तो सब्र के सिवा कोई चारा नहीं, आई तो रोज़ी नहीं तो रोज़ा

आई तो रमाई नहीं तो फ़क़त चारपाई

मिल गई तो मज़ा लिए अन्यथा चारपाई पर अकेले सोकर समय बिताया, काम बना तो बना नहीं तो कोई बात नहीं

बसे तो गूजर , नहीं तो ऊजड़

वो बस्ती जो वीरान पड़ी रहे या निचले तबक़े के लोगों से आबाद होजाए (निज़ाम उद्दीन औलिया की बददुआ जो उन्हों ने फ़िरोज़ तुग़ल्लुक़ से नाराज़ होकर इस के क़िले को दी थी अब ज़रब-उल-मसल

बुझना तो रोज़ी, नहीं तो रोज़ा

अत्यधिक निर्धनता स्पष्ट करने के लिए प्रयुक्त

लगी तो रोज़ी, नहीं तो रोज़ा

मिल गया तो खा लिया वर्ना उपवास रख लिया अर्थात मिला तो खा लिया नहीं तो व्रत समझो, अत्यधिक निर्धनता की ओर इशारा

और नहीं तो क्या

यही बात तो है, निश्चित रूप से यही है, बेशक ऐसा ही है

गिलहरी पेड़ा तो नही माँगती

(ओ) क्या बुरा काम (जमा) कराने को दिल चाहता है, क्या कुझाती तो नहीं

रूपया तो शैख़, नहीं तो जुलाहा

रुपया से आदमी की इज़्ज़त होती है, ज़र है तो नर है वर्ना ख़र है

रूपया तो शैख़, नहीं तो जुलाहा

रुपया से आदमी की सम्मान होता है

और कुछ नहीं तो

(this or then) if nothing else

आया तो नोश नहीं फ़रामोश

कुछ मिल गया तो खा लिया अन्यथा उपवास ही से पड़ रहे

आई रोज़ी नहीं तो रोज़ा

कुछ मिल गया तो खा पी लिया नहीं तो भूखा रह गया, भरोसे और संतोष पर गुज़र बसर है

कमबख़्ती तो नहीं आई

क्या मुसीबत आई है, खोए दिन तो नहीं आए, पिटने को तो मन नहीं कर रहा है

मछलियाँ तो नहीं कि सरा जाएँगी

ऐसी क्या जल्दी है, आमतौर पर बेटी की शादी के संबंध में कहते हैं

मानो तो देव नहीं तो भेंट कालियो

रुक : मानव तो देवता अलख

इतने तो नहीं हो

इतनी शक्ति या भाग्य में नहीं है

प्रजा नहीं तो राजा कहाँ

जनता नहीं तो हाकिम भी नहीं

सर तो नहीं फिरा

(व्यंग्य) बुरा समय तो नहीं आया, बुद्धि भ्रष्ट तो नहीं हो गया

काटो तो लहू नहीं

बहुत भयभीत था, बहुत अधिक सदमे में था

काटो तो लहू नहीं

बहुत भयभीत था, बहुत अधिक सदमे में था

सर तो नहीं कुझाता

(तंज़न) शामत आई है, मार खाने को जी चाहता है

काटो तो ख़ून नहीं

बहुत भयभीत था, बहुत अधिक सदमे में था

मानो तो देव नहीं तो भेत कालियो

रुक : मानव तो देवता अलख

मानो तो देवता नहीं मानो तो पत्थर

एतिक़ाद ही से किसी की इज़्ज़त-ओ-हुर्मत की जाती है, अगर एतिक़ाद नहीं तो कुछ भी नहीं

मुँह का निवाला तो नहीं है

सहज कार्य नहीं है

बजी तो बजाई नहीं तोड़ खाई

उस व्यक्ति के लिए बोलते हैं जो किसी वस्तु को बर्बाद न होने दे और हर तरह से अपने काम में लाए

मानो तो देवी नहीं मानो तो पत्थर

एतिक़ाद ही से किसी की इज़्ज़त-ओ-हुर्मत की जाती है, अगर एतिक़ाद नहीं तो कुछ भी नहीं

रक्खे तो पीत, नहीं तो पलीत

यदि प्रेम को सदैव निश्चित रक्खे तो बहुत अच्छी बात है वर्ना बहुत बुरी

यहाँ कुछ नाल तो नहीं गड़ा

यहां तुम पैदा तो नहीं हुए जो इस क़दर दावा और इस्तिहक़ाक़ जताते हो यानी ये जगह कोई वतन मौलिद तो नहीं कि छूट ना सके , जहां सींग समाएं गे चले जाऐंगे

यहाँ कुछ नाल तो नहीं गड़ी

यहां तुम पैदा तो नहीं हुए जो इस क़दर दावा और इस्तिहक़ाक़ जताते हो यानी ये जगह कोई वतन मौलिद तो नहीं कि छूट ना सके , जहां सींग समाएं गे चले जाऐंगे

घर से लड़कर तो नहीं चले

कोई ज़बरदस्ती बिगड़ता और जघड़ता है और ख़्वाहमख़्वाह किसी के सर होता है तो ये जुमला कहते हैं

पढ़े तो हैं पर गुने नहीं

ज्ञान तो प्राप्त कर लिया है परंतु अनुभव नहीं

अकेली तो लकड़ी भी नहीं जलती

अकेला आदमी काम अच्छी तरह नहीं कर सकता

आया तो नोश नहीं वर्ना ख़ामोश

बहुत आत्मसंतोषी होना

अपनी तो ये देह भी नहीं

मनुष्य का अपने शरीर पर भी अधिकार नहीं यह ईश्वर का है

पढ़े तो हैं पर गुणी नहीं

ज्ञान तो प्राप्त कर लिया है परंतु अनुभव नहीं

रक्खे तो प्रीत, नहीं तो पलीत

यदि प्रेम को सदैव निश्चित रक्खे तो बहुत अच्छी बात है वर्ना बहुत बुरी

वो नहीं तो उस का भाई

एक नहीं तो दूसरा सही, काम केवल एक पर समाप्त नहीं, किसी ख़ास आदमी के न होने से काम रुकता नहीं

कुछ शामत तो आई नहीं है

ज़बान दराज़-ओ-बेअदब से रंजिश के अंदाज़ में गुफ़्तगु , दोस्त से फ़र्त मुहब्बत और तपाक के इज़हार के मौक़ा पर मुस्तामल

लगा तो तीर नहीं तो तुक्का

आदमी को हिम्मत नहीं हारना चाहिए

भाई तो खाई नहीं छींके धर उठाई

जो पसंद आया खाया नहीं तो दूर किया

बल तो अपना बल, नहीं तो जाए जल

भरोसा अपने ही बल पर करना चाहिये अगर अपना बल नहीं तो पराया बल बेकार है

ये तो कुछ बात नहीं

यह ग़लत है, यह ठीक नहीं, ऐसी बात नहीं है, ऐसा नहीं हो सकता

काटो तो लहू नहीं बदन में

बहुत भयभीत था, बहुत अधिक सदमे में था

काटो तो ख़ून नहीं बदन में

बहुत भयभीत था, बहुत अधिक सदमे में था

पढ़ो तो पढ़ो नहीं पिंजरा ख़ाली करो

काम करना है तो करो नहीं तो जाओ

खात पड़े तो खेत नहीं तो रेत का रेत

ख़र्च करे तो काम बनेगा नहीं तो बिगड़ेगा, जब तक खेत में खात् ना पड़े ज़मीन काबिल-ए-ज़िराअत नहीं होती

बोलो तो बोलो, नहीं पिंजड़ा ख़ाली करो

तोते को कहा जाता है कि यदि बातें न करोगे तो निकाल देंगे

टूटी है तो किसी से जुड़ी नहीं और जुड़ी है तो कोई तोड़ सकता नहीं

बीमार आदमी को सांत्वना देने के लिए कहते हैं

यहाँ कुछ माल तो नहीं गड़ा है

जहाँ कोई अपना दावा या विशेषाधिकार जताता है, वहाँ ऐसा कहा जाता है

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