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हिन्दी, इंग्लिश और उर्दू में मास खाए मास बढ़े, घी खाए बल होय, साग खाए ओझ बढ़े बूता कहाँ से होय के अर्थदेखिए
मास खाए मास बढ़े, घी खाए बल होय, साग खाए ओझ बढ़े बूता कहाँ से होय
maas khaa.e maas ba.Dhe, ghii khaa.e bal hoy, saag khaa.e ojh ba.Dhe buutaa kahaa.n se hoy•ماس کھائے ماس بڑھے، گھی کھائے بل ہوئے، ساگ کھائے اوجھ بڑھے بوتا کہاں سے ہوئے
अथवा : गोश्त खाए गोश्त बढ़े, घी खाए बल होय, साग खाए ओझ बढ़े बूता कहाँ से होय, गोश्त खाए गोश्त बढ़े, साग खाए ओझड़ी, तो बल कहाँ से हो
कहावत
मास खाए मास बढ़े, घी खाए बल होय, साग खाए ओझ बढ़े बूता कहाँ से होय के हिंदी अर्थ
-
मांस खाने से मांस बढ़ता है, घी खाने से बल बढ़ता है और साग खाने से पेट बढ़ता है परंतु बल नहीं होता
विशेष • ओझ= पेट।
ماس کھائے ماس بڑھے، گھی کھائے بل ہوئے، ساگ کھائے اوجھ بڑھے بوتا کہاں سے ہوئے کے اردو معانی
- Roman
- Urdu
- گوشت کھانے سے گوشت بڑھتا ہے، گھی کھانے سے طاقت آتی ہے، ساگ کھانے سے پیٹ بڑھتا ہے مگر طاقت نہیں آتی
Urdu meaning of maas khaa.e maas ba.Dhe, ghii khaa.e bal hoy, saag khaa.e ojh ba.Dhe buutaa kahaa.n se hoy
- Roman
- Urdu
- gosht khaane se gosht ba.Dhtaa hai, ghii khaane se taaqat aatii hai, saag khaane se peT ba.Dhtaa hai magar nahii.n aatii
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हुआ सो हुआ
(अतीत पर धैर्य, सब्र या खेद व्यक्त करने के लिए प्रयुक्त) जो कुछ हो गया हो गया, जाने दो, चिंता न करो, भूल जाओ
माया हुई तो क्या हुआ हरदा हुआ कठोर, नौ नेज़े पानी चढ़ तो भी न भीगी कोर
दौलतमंद का दिल अगर पत्थर है तो किसी काम का नहीं, कंजूस के मुताल्लिक़ कहते हैं कि इस पर कोई असर नहीं होता
माया हुई तो क्या हुआ हरदा हुआ कठोर, नौ नेज़े पानी चढ़ा तो भी न भीगी कोर
दौलतमंद का दिल अगर पत्थर है तो किसी काम का नहीं, कंजूस के मुताल्लिक़ कहते हैं कि इस पर कोई असर नहीं होता
मौत को पकड़ा तो बुख़ार पर राज़ी हुआ
मुश्किल काम पर पकड़ेंगे तो आसान काम पर राज़ी होगा, जब आदमी बड़ी मुसीबत में गिरफ़्तार होता है तो थोड़े से दुख और मेहनत को समझता हय
बग़ल था सियारा, तो पूत था हमारा, जब कमर हुवा कटारा, तो कंथ हुआ तुम्हारा
खाने पीने को हमारा था कमाने को तुम्हारा हो गया बेटे बहू की तरफ़ इशारा है
जोगी जुगत जानी नाहीं, कपड़े रंगे तो क्या हुआ
सन्यासी या जोगी बनने के उसूल से अनभिज्ञ अथवा अपरिचित हैं और दिखावे के लिए गेरू में कपड़े रंग लिए हैं
जोगी जुगत जानी नहीं, कपड़े रंगे तो क्या हुआ
सन्यासी या जोगी बनने के उसूल से अनभिज्ञ अथवा अपरिचित हैं और दिखावे के लिए गेरू में कपड़े रंग लिए हैं
आईना तो मुयस्सर न हुआ होगा चपनी में मूत के देख
अगर कोई कुरूप व्यक्ति किसी चंचल स्त्री से मज़ाक़ करे तो वो कहती है
राजा भए तो क्या हुआ अंत जाट के जाट
कमीना कितने ही बलंद मर्तबा पर पहुंच जाये उस की फ़ितरत नहीं बदलती , दौलतमंद हो जाने के बावजूद पुरानी आदतें नहीं बदलतीं
राजा हुए तो क्या हुआ अंत जाट के जाट
कमीना कितने ही बलंद मर्तबा पर पहुंच जाये उस की फ़ितरत नहीं बदलती , दौलतमंद हो जाने के बावजूद पुरानी आदतें नहीं बदलतीं
जोगी जुगत जाने नहीं गेरू में कपड़े रंगे तो क्या हुआ
सन्यासी या जोगी बनने के उसूल से अनभिज्ञ अथवा अपरिचित हैं और दिखावे के लिए गेरू में कपड़े रंग लिए हैं
बजा नक़्क़ारा कूच का उखड़न लागी मीख़, चलने हारे तो चल बसे खड़ा हुआ तू देख
दुनिया की नश्वरता दर्शाने के लिये कहते हैं
एक तो मियाँ ऊँघते उस पर खाई भंग, तले हुआ सर ऊपर हुई तंग
सुस्त व्यक्ति और उस पर काम ऐसे करे जिस से सुस्ती और बढ़े
बीस पचीस के अंदर में जो पूत सपूत हुआ सो हुआ, मात पिता मुकनारन को जो गया न गया सो कहीं न गया
बीस पचीस वर्ष की आयु तक लड़का अच्छा बन सकता है
बीस पचीस के अंदर में जो पूत सपूत हुआ सो हुआ, मात पिता कल्तारन को जो गया न गया सो कहीं न गया
बीस पचीस वर्ष की आयु तक लड़का अच्छा बन सकता है
एक तो मियाँ थे ही थे ऊपर से खाई भंग, तले हुआ सर ऊपर हुई तंग
सुस्त व्यक्ति और उस पर काम ऐसे करे जिस से सुस्ती और बढ़े
एक तो मियाँ थे ही थे दूसरे खाई भांग, तले हुआ सिर ऊपर हुई टांग
सुस्त व्यक्ति और उस पर काम ऐसे करे जिस से सुस्ती और बढ़े
शेर मारता है तो सौ गीदड़ खाते हैं
बलंद हिम्मत और आली ज़र्फ़ लोग अपनी कमाई का बेशतर हिस्सा ज़रूरतमंदों पर सिर्फ़ करदेते हैं
गोश्त खाए गोश्त बढ़े, साग खाए ओझड़ी, तो बल कहाँ से हो
मांस खाने से मांस बढ़ता है, घी खाने से बल बढ़ता है और साग खाने से पेट बढ़ता है परंतु बल नहीं होता
गोश्त खाए गोश्त बढ़े , साग खाए ओझड़ी तो बल कहाँ से हो
गोश्त खाने से आदमी उमूमन मोटा ताज़ा होता है, साग बात या सब्ज़ी खाने से पेट बढ़ता है ताक़त नहीं आती
शेर मारता है तो सौ लोमड़ियाँ खाती हैं
बलंद हिम्मत और आली ज़र्फ़ लोग अपनी कमाई का बेशतर हिस्सा ज़रूरतमंदों पर सिर्फ़ करदेते हैं
गोश्त खाए गोश्त बढ़े , घी खाए बल होए , साग खाए ओझ बढ़े तो बल कहाँ से होए
गोश्त खाने से आदमी मोटा होता है, घी खाने से ताक़त आती है, सबज़ीयां खाने से पेट बढ़ता है मगर ताक़त नहीं अति
अल्लाह को देखा नहीं पर 'अक़्ल से तो पहचाना है
आसार-ओ-क़राइन से किसी अमर वग़ैरा का अंदाज़ा लगाने के मौक़ा पर मुस्तामल
ख़ुदा को देखा नहीं तो 'अक़्ल से पहचाना है
हर जगह ग़लत नहीं होता, बुद्धि से बहुत कुछ बातें समझ में आ जाती हैं
टूटी है तो किसी से जुड़ी नहीं और जुड़ी है तो कोई तोड़ सकता नहीं
बीमार आदमी को सांत्वना देने के लिए कहते हैं
गू में कौड़ी गिरे तो दाँतों से उठाता है
बहुत हरीस और बख़ील आदमी की निसबत कहते हैं, बहुत कंजूस है, फ़ायदे के लिए ज़लील काम करने पर भी तैय्यार है
आता हो तो हाथ से न दीजे, जाता हो तो उसका ग़म न कीजे
ملتی چیز کو چھوڑنا اور گئی ہوئی چیز پر افسوس کرنا نہ چاہئے
तू कहे सो सच है बूढ़ी तू कहे सो सच
किसी की सच बात को भी अनसुनी करना, जब कोई किसी की दुहाई सुनना न चाहे
बारह बरस की कन्या और छटी रात का बर वो तो पीवे दूध है तेरा मन माने सो कर
जब वास्तविकता में पति बुरा है तो स्त्री को अधिकार है जो चाहे सो करे
बाजरा कहे में हूँ अकेला दो मोसली से लड़ूँ अकेला जो मेरी ताजो खिचड़ी खाए तो तुरत बोलता ख़ुश हो जाए
एक कहावत जो बाजरे की प्रशंसा में प्रयुक्त, परयायवाची: यदि सुंदर स्त्री बाजरा खाए तो बहुत प्रसन्न हो
संदर्भग्रंथ सूची: रेख़्ता डिक्शनरी में उपयोग किये गये स्रोतों की सूची देखें .

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mu'aavin
मु'आविन
.مُعاوِن
partner, associate, accompanist
[ Thekedar ne waqt par kaam pura karne ke liye muavin thekedaron ka sahara liya ]

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ta'aavun
त'आवुन
.تَعاوُن
cooperation, mutual aid, assistance
[ Shauhar aur biwi ke bich aapas mein taawun zaruri hai ]

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maatahat
मातहत
.ماتَحَت
subordinate
[ Jo kaam jis maatahat ke supurd hai usi ke zariya us kaam ko un tak pahunchna chahiye ]

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fayyaazii
फ़य्याज़ी
.فَیّاضی
generosity, liberality
[ Sonu-Sud ne Corona mutassirin ka taawun fayyazi se kiya ]

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saKHaavat
सख़ावत
.سَخاوَت
generosity, munificence
[ Hatim Taai apni sakhawat ke liye msh.hur the ]

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sharaafat
शराफ़त
.شَرافَت
dignity, honour
[ Waza-dari (Tradition) aur sharafat ne logon ke mizaj mein khush-gawar rang paida kiya tha ]

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ज़ाबिता
.ضابِطَہ
custom, control, discipline
[ Zindagi mein sukoon-o-chain ke liye zaroori hai ki koyi zabita ho ]

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.اَخْلاق
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एहसान
.اِحْسان
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[ Ehsan ka bakhan karne wale insan ka ehsan kaun manega ]

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