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मुज्मल की रू से

संक्षेप में, संक्षिप्त रूप में, मुख़्तसर तौर पर, थोड़े शब्दों में

इस की रू से

according to

हिसाब की रू से

as per calculation or accounts

दो आदमियों की गवाही से फाँसी होती है

दो लोगों की बात का बड़ा प्रभाव होता है, दो लोगों की राय महत्वपूर्ण होती है

झूटे की कुछ पत नहीं सजन झूट न बोल, लख-पति का झूट से दो कौड़ी का हो मोल

झूठे का कोई सम्मान नहीं होता

झूटे की कुछ पत नहीं सजन झूट न बोल, लख-पति का झूट से दो कौड़ी हो मोल

झूठे का कोई सम्मान नहीं होता

शाह ख़ानम की आँखें दुखती हैं, शहर के चराग़ दीए गुल कर दो

ऐसी नाज़ुक मिज़ाज और मुतकब्बिर हैं कि अपनी तकलीफ़ के साथ औरों को भी तकलीफ़ देने से परहेज़ नहीं करतीं, अपनी तकलीफ़ और मुसीबत में औरों को मुबतला करना

टुकड़ा सा तोड़ के हाथ में दे देना

लगी लिपटी ना रखना, साफ़ जवाब देना, दो टोक जवाब देना, इनकार करदेना

गुड़ न दे गुड़ की सी बात तो करे

a kind word costs nothing

गुड़ न दे तो गुड़ की सी बात तो कहे

अगर किसी से अच्छा व्यव्हार न कर सके तो विनम्रता से तो बोले

कोई कौड़ी के दो बेर भी हाथ से न खाए

सख़्त ज़लील-ओ-बेवुक़त है

अपने सूई न जाने दो, दूसरे के भाले घुसेड़ दो

स्वयं थोड़ी पीड़ा भी गवारा नहीं दूसरे पर बड़ी बड़ी विपत्तियाँ ढाई जाती हैं

रज़ील की दो न अशराफ़ की सौ

कमीने की दो गालियां भी शरीफ़ की सौ गालियों से बढ़ कर होती हैं

घर से आए कोई, संदसा दे कोई

रुक : घर से आए हैं अलख

रानी को बाँदी कहा हँस दी, बाँदी से बाँदी कहा रो दी

कमीने की वास्तविक्ता स्पष्ट की जाये या किसी का वास्तविक दोष वर्णित किया जाये तो उसे अप्रिय जान पड़ता है

नाई दाई , धोबी , बेद , क़साई उन का सू तक कभी न जाई

ये चारों हमेशा से कसीफ़ तबीयत होते हैं, ये चारों हमेशा नापाक रहते हैं

हाथ से कोड़ी के दो बेर भी न खाना

बड़ी नाक़द्री करना

चंदन पड़ा चमार के नित उठ कूटे चाम, रो रो चंदन मही फिरे पड़ा नीच से काम

अच्छी चीज़ नाक़द्र शनास के हाथ लग जाये-ओ-वो क़दर नहीं करता और फ़ुज़ूल कामों में इस्तिमाल करता है

दिल्ली से मैं आऊँ ख़बर कहे मेरा भाई, घर से आए कोई संदेसा दे कोई

ये कहावत उन लोगों के प्रति बोलते हैं जिन को किसी बात का ज्ञान होना आवश्यक समझा जाता है मगर वो लापरवाही या मूर्खता के कारण इस बात से अनभिज्ञ या अज्ञानी हों

साजन हम तुम ऐक हैं देखत के हैं दो, मन से मन को तौल दो मन कदी न हो

हम तुम असल में एक हैं भले ही दो दिखाई देते हैं

राई से काई करना

रेज़ा रेज़ा या टुकड़े टुकड़े कर देना , नीस्त-ओ-नाबूद कर देना, तबाह-ओ-बर्बाद कर देना

राई से काई होना

राई से काई करना (रुक) का लाज़िम

सियार औरों को शगून दे , आप कुत्तों से डरे

गीदड़ का रास्ते में मिलना अच्छ्াा शगून समझा जाता है मगर ख़ुद कुत्तों से डरता है यानी दूओसरों को फ़ायदा पहुंचाए मगर ख़ुद को कोई फ़ायदा ना हो

बिन मतलब के सौ मतलब के दो

अपनी पसंद और ज़रूरत की थोड़ी चीज़, बगैर पसंद या ज़रूरत की ज़्यादा चीज़ से बहुत बेहतर होती है

रूई का सा गाला

अधिक चिकनी और सफ़ेद चीज़

दुधैल गाय की दो लातें भी सही जाती हैं

किसी ख़ूबी या लाभ के कारण बुराई या तकलीफ़ सहन कर ली जाती है

दुधैल गाय की दो लातें भी सही जाती हैं

जिस से नफ़ा पहुंचता है इस की नाज़ बर्दारी बुरी नीहं मालूम होती फ़ायदे के लिए तकलीफ़ उठाना बुरा नहीं लगता

एक से ले, एक को दे

ईश्वर किसी को धनी बनाता है किसी को निर्धन

बुरे का साथ दे सो भी बुरा

बुरे व्यक्ति का मित्र भी बुरा ही होता है

मन की मुर्री किस से कहूँ पेट मसोसा दे दे रहूँ

अपना दुख या भूक किस से कहूँ पेट दबा कर चुप हो रहती हूँ

दूध की सी मक्खी निकाल कर फेंक दी

किसी निकट संबंधी को अपने यहाँ से निकाल देना, अधिकारच्युत कर देना, संबंध तोड़ देना

हिन्दी, इंग्लिश और उर्दू में हाथ से कोड़ी के दो बेर भी न खाना के अर्थदेखिए

हाथ से कोड़ी के दो बेर भी न खाना

haath se ko.Dii ke do ber bhii na khaanaaہاتھ سے کوڑی کے دو بیر بھی نَہ کھانا

मुहावरा

हाथ से कोड़ी के दो बेर भी न खाना के हिंदी अर्थ

  • बड़ी नाक़द्री करना

ہاتھ سے کوڑی کے دو بیر بھی نَہ کھانا کے اردو معانی

  • Roman
  • Urdu
  • بڑی ناقدری کرنا

Urdu meaning of haath se ko.Dii ke do ber bhii na khaanaa

  • Roman
  • Urdu

  • ba.Dii naaqadrii karnaa

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इस की रू से

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दो आदमियों की गवाही से फाँसी होती है

दो लोगों की बात का बड़ा प्रभाव होता है, दो लोगों की राय महत्वपूर्ण होती है

झूटे की कुछ पत नहीं सजन झूट न बोल, लख-पति का झूट से दो कौड़ी का हो मोल

झूठे का कोई सम्मान नहीं होता

झूटे की कुछ पत नहीं सजन झूट न बोल, लख-पति का झूट से दो कौड़ी हो मोल

झूठे का कोई सम्मान नहीं होता

शाह ख़ानम की आँखें दुखती हैं, शहर के चराग़ दीए गुल कर दो

ऐसी नाज़ुक मिज़ाज और मुतकब्बिर हैं कि अपनी तकलीफ़ के साथ औरों को भी तकलीफ़ देने से परहेज़ नहीं करतीं, अपनी तकलीफ़ और मुसीबत में औरों को मुबतला करना

टुकड़ा सा तोड़ के हाथ में दे देना

लगी लिपटी ना रखना, साफ़ जवाब देना, दो टोक जवाब देना, इनकार करदेना

गुड़ न दे गुड़ की सी बात तो करे

a kind word costs nothing

गुड़ न दे तो गुड़ की सी बात तो कहे

अगर किसी से अच्छा व्यव्हार न कर सके तो विनम्रता से तो बोले

कोई कौड़ी के दो बेर भी हाथ से न खाए

सख़्त ज़लील-ओ-बेवुक़त है

अपने सूई न जाने दो, दूसरे के भाले घुसेड़ दो

स्वयं थोड़ी पीड़ा भी गवारा नहीं दूसरे पर बड़ी बड़ी विपत्तियाँ ढाई जाती हैं

रज़ील की दो न अशराफ़ की सौ

कमीने की दो गालियां भी शरीफ़ की सौ गालियों से बढ़ कर होती हैं

घर से आए कोई, संदसा दे कोई

रुक : घर से आए हैं अलख

रानी को बाँदी कहा हँस दी, बाँदी से बाँदी कहा रो दी

कमीने की वास्तविक्ता स्पष्ट की जाये या किसी का वास्तविक दोष वर्णित किया जाये तो उसे अप्रिय जान पड़ता है

नाई दाई , धोबी , बेद , क़साई उन का सू तक कभी न जाई

ये चारों हमेशा से कसीफ़ तबीयत होते हैं, ये चारों हमेशा नापाक रहते हैं

हाथ से कोड़ी के दो बेर भी न खाना

बड़ी नाक़द्री करना

चंदन पड़ा चमार के नित उठ कूटे चाम, रो रो चंदन मही फिरे पड़ा नीच से काम

अच्छी चीज़ नाक़द्र शनास के हाथ लग जाये-ओ-वो क़दर नहीं करता और फ़ुज़ूल कामों में इस्तिमाल करता है

दिल्ली से मैं आऊँ ख़बर कहे मेरा भाई, घर से आए कोई संदेसा दे कोई

ये कहावत उन लोगों के प्रति बोलते हैं जिन को किसी बात का ज्ञान होना आवश्यक समझा जाता है मगर वो लापरवाही या मूर्खता के कारण इस बात से अनभिज्ञ या अज्ञानी हों

साजन हम तुम ऐक हैं देखत के हैं दो, मन से मन को तौल दो मन कदी न हो

हम तुम असल में एक हैं भले ही दो दिखाई देते हैं

राई से काई करना

रेज़ा रेज़ा या टुकड़े टुकड़े कर देना , नीस्त-ओ-नाबूद कर देना, तबाह-ओ-बर्बाद कर देना

राई से काई होना

राई से काई करना (रुक) का लाज़िम

सियार औरों को शगून दे , आप कुत्तों से डरे

गीदड़ का रास्ते में मिलना अच्छ्াा शगून समझा जाता है मगर ख़ुद कुत्तों से डरता है यानी दूओसरों को फ़ायदा पहुंचाए मगर ख़ुद को कोई फ़ायदा ना हो

बिन मतलब के सौ मतलब के दो

अपनी पसंद और ज़रूरत की थोड़ी चीज़, बगैर पसंद या ज़रूरत की ज़्यादा चीज़ से बहुत बेहतर होती है

रूई का सा गाला

अधिक चिकनी और सफ़ेद चीज़

दुधैल गाय की दो लातें भी सही जाती हैं

किसी ख़ूबी या लाभ के कारण बुराई या तकलीफ़ सहन कर ली जाती है

दुधैल गाय की दो लातें भी सही जाती हैं

जिस से नफ़ा पहुंचता है इस की नाज़ बर्दारी बुरी नीहं मालूम होती फ़ायदे के लिए तकलीफ़ उठाना बुरा नहीं लगता

एक से ले, एक को दे

ईश्वर किसी को धनी बनाता है किसी को निर्धन

बुरे का साथ दे सो भी बुरा

बुरे व्यक्ति का मित्र भी बुरा ही होता है

मन की मुर्री किस से कहूँ पेट मसोसा दे दे रहूँ

अपना दुख या भूक किस से कहूँ पेट दबा कर चुप हो रहती हूँ

दूध की सी मक्खी निकाल कर फेंक दी

किसी निकट संबंधी को अपने यहाँ से निकाल देना, अधिकारच्युत कर देना, संबंध तोड़ देना

संदर्भग्रंथ सूची: रेख़्ता डिक्शनरी में उपयोग किये गये स्रोतों की सूची देखें .

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